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मंगलवार, सितंबर 17, 2013

चंपारण में एक गाँधी आश्रम

भितिहरवा का गाँधी आश्रम 
एक सपना था-बापू का ऐतिहासिक धरोहर भितिहरवा आश्रम सरकारी तंत्र की तंद्रा के चलते उपेक्षित न रहे। न हीं उसकी चाहरदिवारी धूल-धूसरीत हो। सो एक सामाजिक न्याय के झंडाबरदार ने अपने इस सपने को साकार करने के लिए वीणा उठाया। अन्होंने अपने बेबाक वक्तव्यों से सरकारी तंत्र के गैरजिम्मेदाराना रवैये से इतर चंपारण की जनता के अंदर सरकारी सहायता की मोहताज इस अनमोल विरासत के प्रति जागरूकता पैदा की। जिसका नतीजा यह हुआ कि चंपारणवासियों ने उस प्रणेता के अहवान को स्वीकारते हुए गांधी के उपेक्षित आश्रम के जिर्णोद्धार के निमित्त भीक्षाटन किया। नतीजन उक्त वाकये ने तत्कालीन कांग्रेसी सरकार को केवल शर्मसार ही नहीं किया अपितु आनन-फानन में गांधी आश्रम के चाहरदिवारी को बनाने पर भी मजबूर किया। सरकारी तंत्र को शर्मसार करने वाले वे कोई और नहीं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री व समाजिक सरोकार के हितैषी चंद्रशेखर थें। जो कि हमारे बीच अब नहीं हैं।
                                                उनके कार्यशैली का केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरा देश कायल था। युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर के प्रभाव से बिहार का चंपारण भी अछुता नहीं रहा है। जब वे 1988 में पश्चिम चंपारण स्थित भितिहरवा प्रखण्ड में दूसरी बार पांव रखे थे, तब उनसे गांधी के अनमोल धरोहर भितिहरवा आश्रम, जहाँ से गाँधी जी ने चंपारण में ऐतिहासिक सत्याग्रह किया था, की दुर्दशा देख आंखे नम हो गईं। उन्होंने इस विरासत की सरकारी उपेक्षा को देश के लिए शर्म बताया और आश्रम के जिर्णोद्धार के लिए चंपारण की जनता से चंदा एकत्र करने का आह्वान किया। चंदा तो इकट्ठा हुआ। परंतु, अपनी घटती लोकप्रियता को आंकते ही तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने अपने स्तर से बापू की कर्मभूमि पर चाहरदिवारी को जैसे-तैसे बनावा डाला। उस बाबत चंद्रशेखर ने भीक्षाटन से जमा हुई राशि को दूसरे शुभ काम में लगा दिया। उन्होंने उस राशि से आश्रम से लगे गांधी शोध संस्थान की नींव डाल दी। बताते हैं कि चंद्रशेखर ने भितिहरवा में गांधी शोध संस्थान के निर्माण को अपने सपनों का प्रोजेक्ट यानी ड्रीम प्रोजेक्ट माना था तथा वे इस प्रोजेक्ट को अपने जीवनकाल में ही फलीभूत करना चाहते थें।
                                              जानकार बताते हैं कि वे अंतिम बार 12 अप्रैल 2003 को गांधी की इस कर्मभूमि पर पांव रखे थें। जहां उन्होंने इस प्रोजेक्ट में अपने निकटतम सहयोगियों को दगाबाज पाया था। तिस पर भी बलिया के बलराम चंद्रशेखर हार नहीं माने और उन्होंने भावी गांधी शोध संस्थान के समक्ष महान आंदोलनकारी जयप्रकाश नारायण की प्रतीमा का अनावरण किया। साथ में उन्होंने भितिहरवा में आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुये उन धोखेबाज सहयोगियों पर आक्रोश व्यक्त किया।
                                                     
कालांतर में बीमारियों ने उनके शरीर को ऐसे जकड़ा कि दुबारा उन्हें इस पावन भूमि की पीड़ा को तृप्त करने का मौका नहीं मिला। विदित हो कि चंद्रशेखर के देहावसान के बाद उनके अद्भुत ड्रीम प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य भी अधर में लटक गया है। और तो और गांधी आश्रम की चाहरदिवारी में भी दरारें पड़ गईं हैं। जिससे यह कहना मुश्किल है कि सरकार अपने विकास के नारों में राष्ट्रपिता की कर्मभूमि पर चंद्रशेखर के ड्रीम प्रोजेक्ट गांधी शोध संस्थान को सम्मिलित करेगी। क्योंकि, बापू का भितिहरवा आश्रम ही पूरी तरह उपेक्षित है।
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- सौरभ के.स्वतंत्र
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