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शुक्रवार, मई 21, 2010

सिक्वेल : अब नीतीश-2 की जरुरत

संजय उपाध्याय. पेशे से पत्रकार.. एक बड़े अख़बार में. पत्रकारिता से समय निकाल अब ब्लॉग जगत में आखर खाट से कदम रखा है..कल मै उनके ब्लॉग पर विचर रहा था तो मुझे एक बेहतरीन स्क्रिप्ट पढने को मिली...एकदम जीवंत...मुझे लगता है आप सभी को भी यह स्क्रिप्ट पढ़नी चाहिए...सो, पेश है - बिहार, विकास, विश्वास और नीतीश...

स्टार्ट लेता हूं बिहार की एक ऐसी पंचायत से जहां कल तक भूख थी, बेकारी थी, गरीबी थी। इसी खाई को पाटने के लिए बिहार सरकार ने राज्य की कुछ चुनिंदा पंचायतों को आदर्श पंचायत का दर्जा दिया। उन्हीं में से एक है राज्य के पश्चिम चम्पारण जिला के रामनगर प्रखंड की बगही पंचायत। दरअसल यह एक ऐसी पंचायत है, जिसने शायद कभी न तो विकास का रंग देखा और नहीं किसी विश्वास का पात्र बन पाया। वजह अब से एक दशक पहले तक तो यहां सड़क दलदल जमीन पर थी। चाहकर भी कोई कुछ नहीं कर पाता था। गांव में कोई बीमार पड़ता था तो इलाज के चार लोग मिलते थे और खाट पर लादकर सालम आदमी डाक्टर के पास ले जाया जाता था। परंतु, अब फिजा थोड़ी बदली है। यहां तक आने के लिए पक्की सड़क बन गई है। इस सड़क पर जुगाड़ (पटवन की मशीन से बना वाहन) के साथ-साथ माडा योजना के तहत दिए गए वाहन भी सवारी (आदमी) ढोते हैं। गांव के बगल में स्कूल खुले हैं और बच्चे पढऩे लगे हैं। गांव में डीलर राशन व केरोसिन देता है। परंतु, आज भी यहां गरीबी का स्थाई डेरा है। बात विकास के बूते जनता के दिल में उगे विश्वास के पेड़ की थी, सो उसकी हरियाली को मापने का मन बनाया बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने। अंदर ही अंदर तैयारी की और विकास की सड़क पर विश्वास के सफर पर निकल गए। उन्होंने अपनी विश्वासी यात्रा की शुरूआत की इसी पंचायत से। तारीख 29 अप्रैल दिन गुरुवार। लंबी जद्दोजहद कड़ी सुरक्षा और सरकारी तंत्र द्वारा बनाई गई विकास के हेलीपैड (रामबाग, सखुआनी) पर नीतीश का आर्यन (हेलीकाप्टर) उतरा। फिर बांस-बल्ला का बैरियर और नीतीश के विश्वास में द्वंद हुई और वे अचानक एम्बैसडर कार से नीचे उतर गए। फिर हाकिम परेशान। मीडिया परेशान। गांव के लोग भी परेशानी में अपनी समस्या को लेकर। खैर नीतीश का विश्वासी सफर का सीन बड़ा रोमांचक।


सीन वन :- डीलर कृष्णा प्रसाद की दुकान। अंदर घुसे। जांच किया। बाहर निकले पूछा- इहवां राशन-केरोसिन मिलेला। पात्र चंद्रिका महतो। जवाब-मिलेला।

सीन टू:- एक बिना छत का मकान। बड़ेरी पर बांस, पर छप्पर अधूरा। इसी में खड़े हो गए सीएम। लोगों की खचाखच भीड़। पूछा किसका घर है। जवाब मेरा है। पर यहां सिस्टम का लोचा फंसा। दरअसल वह घर इंदिरा आवास था। ललिता देवी के नाम का। पूछा काहे अधूरा है घर। जवाब- बन जाएगा। कार्ड मंगाया कुल निकासी 34,500। दरअसल एक ही परिवार की सास-बहू के नाम से आवंटन था और घर बन रहा था।

सीन थ्री :- टाट से घिरा एक आंगन। अमेरिका साह का। इसे भी इंदिरा आवास मिला था। बिना पास बुक का बस पंद्रह हजार। उसके बाद सब बंद। डीएम व बीडीओ तलब जांच का आदेश।

सीन चार :- गांव से बाहर घोड़हिया टोला उत्क्रमित मध्य विद्यालय। बिना छप्पर के ओसारे में अचानक सीएम खड़े हुए। आवाज दी अंजनी बाबू (शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव)। वे आए बात की। इतने में शिक्षक सुभाष काजी से पूछा बच्चे। जवाब-हैं। फिर सीएम शिक्षक के तौर पर बच्चों से मिले। पाकशाला देखी और चले गांव में बने मंच की ओर।

लास्ट सीन :- मंच से सब ठीक करने को कहा। कहा विश्वास जगा है। विकास हो रहा है। बच्चे पढ़ रहे हैं। आगे मौका मिला तो और बेहतर होगा। बहुत बातें कि लोगों से आवेदन भी लिए और फिर चले गए। सच मानिए बगही में आज भी नीतीश की याद है और इंतजार उसी विकास का है, जिसकी सड़क पर नीतीश ने विश्वास का सफर तय किया। अर्थात् अभी कुछ शेष है, जिसे पूरा करने के लिए फिर सत्ता में आना होगा वरना बिहार की जनता...!

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