सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

सोमवार, अगस्त 10, 2009

पाठक की एक टिप्पणी...जानदार पंच!

शासक-शासित में बँटा, अपना भारत वर्ष।

शोषित का अपकर्ष है, शोषक का उत्कर्ष।

शब्दवीर जो सोचते लिखते-कहते रोज।

असर नहीं क्यों कीजिये इसके ऊपर खोज।

लिखकर हम यह मानते पूर्ण हो गया फ़र्ज़।

लड़ते नहीं बुराई से, रहता बाकी क़र्ज़।

'सलिल'आम जन से जुड़े,बन उनकी आवाज़।

तब कवि की हुंकार से, हिल जायेंगे ताज।

यह कविता आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने मेरे पोस्ट मैं तो मंत्री हूँ...महंगाई से मेरे को क्या? पर टिप्पणी के रूप में प्रेषित की थी। मुझे लगा यह वाकई उसका सच है। सो, नोश फरमाने के निमित्त इसे पेश कर रहा हूँ ....

1 टिप्पणी:

  1. waah....! are jo mai apane blog per kahe raha hu vo hi sidhi baat... sacchai bhhari baat aapne kar daali ..dhanyawad...

    ----eksacchai {AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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