सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

शुक्रवार, जुलाई 24, 2009

कैसे जाने जायेंगे गाँव वाले साहित्यकार ?

वे साहित्य की सेवा तो पूरी निष्ठा से कर रहे हैं? पर वे गाँव में हैं। वे लिखते हैं साहित्य पीपल की छाओ में , चौका घर में अंगीठी के पास । आसमान तले-काई लगे छत पर बैठ वे देते हैं शब्दों में सौ-सौ गुना उर्जा । साहित्य को देते हैं वे नई ढाल । पर उनके पास मंच नहीं है । उनके पास वे साधन नहीं हैं, जिससे वे पहुँचा सके अपने समग्र साहित्य को । पाठकों में । वे छपते हैं कभी - कभार, किसी लघु पत्र - पत्रिकओं में । वे छपते हैं सहायता राशी से छपी किसी स्मारिका में । पर उनका वजूद हर वक्त उन्हें कोसता है....उन्हें निपट निक्कमा कहता है। क्योंकि , वे राजेंद्र यादव नहीं हैं । न हीं वे मन्नू भंडारी, मैत्रयी पुष्पा, अनामिका या अशोक बाजपेयी वगैरह हैं। हाँ , इतना जरूर की जो घून इनमे लगा है वही उनमे भी । ये वाले साहित्यकार तो जाने जायेंगे हर पीढी में । पर वे ?

दीजिये अपनी राय कि कैसे जाने जायेंगे वे साहित्यकार .... कैसे जानेगी हमारी आने वाली पीढी उनको?
कीजिये अपनी बेबाक टिपण्णी...

- सौरभ के.स्वतंत्र

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